नारी का तुम यूँ अपमान ?
क्या ज्ञात नहीं ! तुमको मानव,
बल से ही बनता बलवान ?
बने हुए हो शक्ति-मान |
जननी के अथक परिश्रम से ही,
प्राप्त किया ये कीर्ति-मान |
निज रक्त-सुधा से सिंचित करके,
बना दिया जिसने महान |
उसको ही अबला संबोधित कर,
मिटा रहे उसकी पहचान |
माना कि तुम परुष जाति हो,
पर इसका है क्यूँ अभिमान ?
पुरुषत्व तुमारा कर्म नहीं,
यह तो स्रष्टि का है विधान |
इससे अवलंबित होकर तुम,
कहते हो खुद को क्यूँ महान ?
करोगे कब तक...........................?????
1 टिप्पणी:
मातृसत्ता को शत-शत नमन....... ।
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