शुक्रवार, 11 मार्च 2011

ऐ जिन्दगी

ऐ जिन्दगी 

मुझे  भूल  जाना 

सिखा   दो 

वो  क्यूँ  याद 

आते  हैं  बार -बार

अब  उनके  बिना

मुस्कराना   सिखा   दो 

ऐ   जिन्दगी 

भूल  जाना 

सिखा  दो 


......................             

6 टिप्‍पणियां:

जीवन का उद्देश ने कहा…

अच्छा है। धन्यवाद

बेनामी ने कहा…

"ऐ जिन्दगी
मुझे भूल जाना
सिखा दो"

अच्छी कामना - कभी कभी बहुत कठिन होता है "भूलना"

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |

कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-

vijay kumar sappatti ने कहा…

bahut der se main aapka blog pad raha tha , aapki choti choti kavitaye mujhe bahut pasand aayi . man ko choo gayi hai ye rachna .. dil se badhayi sweekar kare.

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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना बधाई