है कितनी निष्ठुर दुनिया,अब ये मैंने जाना|
यहाँ किसी ने मुझको, कब है अपना माना ||
जिसको मैंने अपनी, जान से ज्यादा चाहा |
उसने ही मुझसे मिलने पर, ऐसा किया बहाना ||
जैसे हो सदियों से, वह बिलकुल अनजाना|
अब दोस्त किसी की खातिर, तुम न अश्रु बहाना ||
नहीं तो जग समझेगा, उस पर है दीवाना |
शब्दों के तीर चलेगे, तुम बनोगे प्रथम निशाना||
तब तुम भूल जाओगे, प्रेम- प्रथा अपनाना|
सोचोगे सब मिथ्या है, मिथ्या है दिल का लगाना||
इति
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