मंगलवार, 5 जनवरी 2016

शनिवार, 26 दिसंबर 2015



तू जिए शान से ,तेरी हर ख्वाहिश ,पूरी हो ,
क़ामयाबी तेरे कदम चूमे ,ये उसकी मजबूरी हो। 

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015


उन्हें हँसी आती है, मेरे रोने पर,
काश , जान पाते 
मुझे अब नींद ,नहीं आती 
मख़मल के बिछौने पर । 

गुरुवार, 17 दिसंबर 2015


ये सारी ही ,दुनिया ,वीरानी लगे
तुम बिन अधूरी ,जिन्दगानी लगे  । 

रविवार, 24 मई 2015

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

वंदना



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वंदना


हे कृपानिधान ; करुणा  की खान ,
तुझमे है अद्भुत ; शक्ति -ज्ञान |
तुझसे ही चलता ; ये सरसती -यान ,
तुझमे ही समाहित ; विश्व -महान ||




सूर्य बन ; इस वसुंधरा को ,
करता तू ही ; देदीप्यमान |
मेघ बन ; निज कालिमा से ,
ढक  लेता ; तू ही आसमान ||




दया ,क्षमा ; करुणा ; के सागर,
तू है अपरमित ; गुणों  की खान |
मै अनुरागी ; विवेकहीन नर,
कैसे करू ; तेरा बखान||


.
हो हमारी ; अनुरक्ति तुझमे ,
करू मै ; तेरा ही गुणगान |
ऐसी मुझको ; शक्ति दे प्रभु ,
जपु सदा ; तेरा ही नाम ||


.........................................
.
,
.

शनिवार, 20 अगस्त 2011



 हैलो ब्लागर मित्रों ! मै डॉ. सुशीला गुप्ता ,आपका मेरे ब्लाग पर हार्दिक अभिनन्दन है.


प्लीज़ !     मेरे  ब्लॉग  को  एक  बार  ही  सही  पर  जरूर  रीड  करे और  अपनी  पैनी  दृष्टि     से   परीक्षण  कर  मुझे  मेरी त्रुटियों  से अवश्य  अवगत  कराएँ   ...जिससे  मैं  और निखरकर  आप  लोगो  के  लिए  कुछ  नया  लिखकर  हिंदी    साहित्य   को   और   समृद्ध   बना सकूँ . ......धन्यवाद् 
                                             डॉ.  सुशीला गुप्ता  . 

बुधवार, 1 जून 2011

प्यारी भाभी

 भाभी! तुम पे बहुत
 प्यार आता है |
तुम्हारे  सिवा अब
न कोई भाता है ||

दिया प्यार तुमने
इतना मुझे |
जैसे हमारा,
वर्षों का नाता है || 

नहीं कोई शिकवा,
शिकायत मुझे |
हूँ आज खुश जो,
इनायत तेरी ||

श्रद्धा करूँ,तेरी भक्ति करूँ,
तेरे लिए, निशि-दिन मरुँ ||
तुझमे समाहित है मन मेरा,
है आज गद-गद ये दिल मेरा ||

खुशियाँ हो दामन में,तेरे सदा,
आंसूं न देना,ऐ मेरे खुदा ||
व्याकुल है दिल,होके तुमसे जुदा,
सबसे निराली है,मेरी भाभी की अदा ||



शनिवार, 28 मई 2011


मेरे  पिया 


तुम्हारी  क्या  खता   थी


किस्मत  का  सब  कुसूर


पल -भर  में  कैसे


हो  गए  हम  दूर


भरती   हूँ  आँहें


लेती  हूँ  सिसकियाँ


क्या  बचा  है


 इस  जीवन  में


क्यूँ  तड़पे


"अब
  "
ये  हिया


ओह!!!!!!!!!


आ   जाओ    न 
  
 मेरे   पिया   ! 
                                                  ..................................................

शुक्रवार, 27 मई 2011

तेरी खुशबू


भीगी  पलकें  


छलके    आंसू 


रोक  न  पाए 


अविरल  गिरते 


मौन  बनी 


 सब  सहके  भी 


"पर "


तेरी   खुशबू 


महके  क्यूँ ?


जब  नहीं  दीखते 


दूर -दूर  तक


"तो  "


मेरा  दिल 


दहके  क्यूँ ?
................

बुधवार, 13 अप्रैल 2011

Bhool na paaun



भूल  न  पाऊं

भूल  न  पाऊं  तेरे होठ 

भूल  न  पाऊं  तेरी  सूरत 

बस  गए  ऐसे  दिल   में  मेरे 

जैसे  मंदिर  में   मूरत 

ये  जो  तुम्हारी खामोशी 

आँखों  में छाई  मदहोशी 

जाने  क्यूँ  मुझे तड़पाती  है 

कुछ  खोने  को  उकसाती   है 

बरबस  ही 

पास  बुलाती  है 
..........................

बुधवार, 16 मार्च 2011

दिल करता है






आज  तुमे   होठो  से  लगाने  को 

दिल  करता    है 

आज  तुममे  खो  जाने  को 

दिल  करता  है 

यूँ  ही  खामोश   निगाहों  से 

निहारते  हुए 

तुझमे  समां  जाने   को 

दिल  करता  है 

.......................................

मंगलवार, 15 मार्च 2011

एक राज हो तुम

एक  अहसास     हो  तुम 

एक  राज  हो  तुम 

मेरे  दिल  की  चाहत 

फ़रियाद  हो  तुम 

भुला  न  पाउंगी  तुमको 

इस  जनम  में 

तुम  मेरे  मसीहा 

सरताज   भी  तुम 

रोशनी  फैली  है 

इस  जहाँ  में  जिससे 

मेरे  लिए  वह 

आफ़ताब  भी  तुम 
                           


                      ...........................................

.तू मुस्कुराना छोड़ दे



बहुत  कमजोर  हूँ  मैं 

तू  मुस्कुराना  छोड़  दे 


मेरे  घावों  में  तू  अब


मरहम  लगाना  छोड़  दे ||




निगाहें  कातिल  हैं  तेरी


आँखे  मिलाना  छोड़   दे |


जीना  न   मुश्किल  हो  जाए


ये  अदाएं  छोड़  दे ||




बेबस  हूँ  मैं ,लाचार   हूँ


यूँ  दिल  का  लगाना  छोड़  दे 


न  बन  जाए   ये  अफसाना


कसमे -वादे  तोड़   दे ||




प्यार ,मुहब्बत ,चाहत


लफ्जों  को  दुहराना  छोड़    दे |


ऐ  महबूब  मेरे , दिलवर  मेरे


तन्हाई   ,रुसवाई   से  रिश्ता  जोड़  ले ||


            ............................
.





शुक्रवार, 11 मार्च 2011

ऐ जिन्दगी

ऐ जिन्दगी 

मुझे  भूल  जाना 

सिखा   दो 

वो  क्यूँ  याद 

आते  हैं  बार -बार

अब  उनके  बिना

मुस्कराना   सिखा   दो 

ऐ   जिन्दगी 

भूल  जाना 

सिखा  दो 


......................             

रविवार, 6 मार्च 2011

जनम जनम तक

   अच्छा लगता

      तुम्हे सताना

         तुम रूठो

            फिर

               तुझे मानना

                  चलता रहे 

                      ये सिलसिला 

                           मरते - दम तक

                               यूँ - ही

                                    हँसते रहे हम

                                         जनम जनम तक 



तुम बिन जिउं कैसे ?

तुम्ही   मेरी  पूजा 

तुम्ही  मेरी  भक्ति  

तुम्ही  मेरी  सांसे  

तुम्ही   मेरी  शक्ति 

तुम   बिन  जिउं  कैसे ?

ये  तो  बताओ 

यूँ  दूर  जाके 

न  मुझको  सताओ 

अपना  बनके 

 कहाँ      चल  दिए 

मुझको  भुला  के  

क्यूँ  चल  किये 

................................


  

बुधवार, 2 मार्च 2011

सिर्फ तुम

Alvin + Janice
तमाम  ख्याल आते है

उनमे सिर्फ तुम ही 

नज़र आते हो  

खुद  की   परछाई  में   भी   

अब  तुम ही  

बार-बार आते हो 

जब उदास हो 

बैठ जाती हूँ 

घर के किसी कोने में 

तो 

भ्रमर बन तुम ही 

पास  आके 

गीत गुनगुनाते हो 

तुम  ही  हँसाते  हो 

तुम  ही  रुलाते हो 

उफ़! ये  कैसा रि श्ता है ?

क्यूँ  नहीं  तुम  मेरे   

हमसफ़र  बन  जाते  हो?


मंगलवार, 1 मार्च 2011

एक अहसास हो तुम

एक अहसास हो तुम

मेरी  प्यास हो तुम

न  पाउंगी तुमको

ये जानती  हूँ

फिर भी अपना 

 क्यूँ  मानती हूँ?

जिधर देखती हूँ

उधर तुम ही तुम हो

पकड़ना जो चाँहू 

हो जाते हो 

 क्यूँ गम हो ?

कैसे बताऊ ?

है प्यार कितना

सागर में पानी 

होगा न उतना 



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सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

भीगी पलकें

आज  मुझे  छूने  दो    
खुद  को, 
कुछ  पल  तो 
जीने  दो मुझको |
सिसक -सिसक  कर  
आहें   भरती,
तुम बिन प्रियतम
निशि-दिन मरती |
बन जाओ मेरा अवलंबन
एक मधुर चुम्बन लेने दो
आज मुझे  छूने दो 
खुद को |
                

                          .............................

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

Swabhiman

सच कहोगे,
फिर भी कहूँगा,
हकीकत नहीं |
देना चाहोगे-
हाथ उठाकर,
फिर भी कहूँगा-
नहीं साहब,
इसकी कोई-
जरुरत नहीं |
जानते हो क्यों  ?
क्यों कि -
'आज'
पूर्व की भाँति-
इंसान में इंसानियत की-
सीरत नहीं रही |
'कुर्सी के लिए'
जाने कब 'वो'
खुद को बेच दे ,
'आज'
उनके उसूलो में,
हकीकत नहीं रही |
मंदिर - मस्जिद के नाम पर -
वहशी बने हुए है सब,
भाई को ही भाई की -
जरूरत नहीं रही
जब किसी मजलूम को -

सहारे कि जरूरत होती  है
"तो"
झट से,"दामन"-
घसीट लेते हैं 
"ये"
अपना,नेतागिरी के सिवाय  -
इनमे,वतन-फरोशों के प्रति-
"जरा भी"
अकीदत नहीं रही |
हाय !कैसा आ गया जमाना,
देशद्रोहियों  के आगे -
वतन-परस्तों की कोई,
कीमत नहीं रही  |




                           ....................































गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

हर युग की अभिलाषा

 अवनी-अम्बर समझ रहे है,मेरी तेरी भाषा,
 होता पहले कौन घृणित है,मिलती किसे निराशा 
पूरी कर ले अंतिम इच्छा,हर युग की अ|भिलाषा,
आओ हम तुम मिलकर देखे,प्रभु का खेल तमाशा||




त्रेतायुग में हरण   किया ,जोगी बन जनकसुता का,
विश्व-प्रतापी तू कहलाया, लहू बहा जनता का |
अट्टहास तू ही करता था, सब थे तेरे अनुगामी,
न भूलेगा कोई भी जन,तेरी अमर कहानी ||



एक ओर अन्याय खड़ा है,एक ओर  हैं दाता, 
आओ हम तुम मिलकर देखें,प्रभु का खेल तमाशा || 




द्वापरयुग में किया था तूने,एक सती का यूँ अपमान,
भरी सभा में नंगा करके, बढ़ा लिया था अपनी शान |
बिखर गयी थी वह तन-मन से, निकल रही थी उसकी 
जान,
हसता था पापी तू तबतक,जब तक आए न भगवान् ||




नहीं ज्ञात था शायद तुझको,सभी जगह हैं त्राता,
आओ हम-तुम मिलकर देखें,प्रभु का खेल तमाशा ||




त्रेता, द्वापर बीत गए, कलयुग की आई बरी,
तुझसे पीड़ित होकर मानव! सोच रही है हर नारी |
छल-बल से कब तक जीतेंगे, हम सबको ये अत्याचारी,
किस युग तक नीलम करेंगे, बेटी, बहू और महतारी ||




अब भी क्या तुम छुपे रहोगे! मेरे भाग्य-विधाता ?
आओ  हम तुम मिलकर देंखे ,प्रभु का खेल तमाशा ||






                                  ...............





सोमवार, 20 दिसंबर 2010

दहेज़

किसने चलाया ऐसा चलन,
     किसने जलाया ऐसा हवन 
            जिसमे जले सिर्फ नारी  का तन,
                      जिससे   मिले न कभी भी अमन ||


दहेज़ के नाम पर, बोलो अभी तक,
   तुमने  दिया   किस -किस को कफ़न |
        कौन मिटेगा, कौन हटाएगा,  
                 बताओ मुझे क्या है, इसका जतन?


धूँ - धूँ  के स्वाहा हो जाएगा,  
एक दिन ये अपना ,सारा चमन |

                     करते  रहो मन, बेटी बहुओं को


                  ऐसे ही जमीं पे दफ़न | | 
                   


पर बुझाओगे फिर, किससे अपनी तपन,



    लूटोगे फिर किस पे, अपना ये धन ?


           पुकारोगे फिर किसको, अपनी बहन,



                     जब सूना ही कर दोगे, सारा चमन  ?? 
                       
                                          .................... 
            





रविवार, 19 दिसंबर 2010

ग़ज़ल

बेवफाई ने तेरी दिल को, पत्थर बना दिया है   
घावों में जालिम कैसे, नश्तर लगा दिया है | 


तुझे क्या मालूम ये दिल, कैसे-कैसे जिया है 
जग-हँसाई को इसने कैसे, छुप-छुप कर पिया है | 


अब तो यह तन मेरा, बस बुझाता हुआ दिया है 
जाने कब मिट जाए, तड़पा बहुत हिया है | 


मेरी वफ़ा का तूने, अच्छा  सिला दिया है 
कोई क़सर न छोड़ी, जी भर जफ़ा किया है |


कहती हो खुद को सुशीला, पर क्या शील किया है,
अपने ही हाथों मुझको, सरे-समशीर किया है |


                               ......................









बुधवार, 8 दिसंबर 2010

दर्द

  है कितनी निष्ठुर दुनिया,अब ये मैंने जाना|

  यहाँ किसी ने मुझको, कब है अपना माना ||

जिसको मैंने अपनी, जान से ज्यादा चाहा |

उसने ही मुझसे मिलने पर, ऐसा किया बहाना ||

जैसे हो सदियों से, वह बिलकुल अनजाना|

अब दोस्त किसी की खातिर, तुम न अश्रु बहाना ||

नहीं तो जग समझेगा, उस पर है  दीवाना |

शब्दों के तीर चलेगे, तुम बनोगे प्रथम निशाना||

तब तुम भूल जाओगे, प्रेम- प्रथा अपनाना|

सोचोगे सब मिथ्या है, मिथ्या है दिल का लगाना||



                                     इति


         ........................................