तमाम ख्याल आते है
उनमे सिर्फ तुम ही
नज़र आते हो
खुद की परछाई में भी
अब तुम ही
बार-बार आते हो
जब उदास हो
बैठ जाती हूँ
घर के किसी कोने में
तो
भ्रमर बन तुम ही
पास आके
गीत गुनगुनाते हो
तुम ही हँसाते हो
तुम ही रुलाते हो
उफ़! ये कैसा रि श्ता है ?
क्यूँ नहीं तुम मेरे
हमसफ़र बन जाते हो?
1 टिप्पणी:
लिखने में और प्रयास करती रहिये। दिन ब दिन उन्नती आप की कदम चुमेगी। बहुत धन्यवाद,
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