बेवफाई ने तेरी दिल को, पत्थर बना दिया है
घावों में जालिम कैसे, नश्तर लगा दिया है |
तुझे क्या मालूम ये दिल, कैसे-कैसे जिया है
जग-हँसाई को इसने कैसे, छुप-छुप कर पिया है |
अब तो यह तन मेरा, बस बुझाता हुआ दिया है
जाने कब मिट जाए, तड़पा बहुत हिया है |
मेरी वफ़ा का तूने, अच्छा सिला दिया है
कोई क़सर न छोड़ी, जी भर जफ़ा किया है |
कहती हो खुद को सुशीला, पर क्या शील किया है,
अपने ही हाथों मुझको, सरे-समशीर किया है |
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घावों में जालिम कैसे, नश्तर लगा दिया है |
तुझे क्या मालूम ये दिल, कैसे-कैसे जिया है
जग-हँसाई को इसने कैसे, छुप-छुप कर पिया है |
अब तो यह तन मेरा, बस बुझाता हुआ दिया है
जाने कब मिट जाए, तड़पा बहुत हिया है |
मेरी वफ़ा का तूने, अच्छा सिला दिया है
कोई क़सर न छोड़ी, जी भर जफ़ा किया है |
कहती हो खुद को सुशीला, पर क्या शील किया है,
अपने ही हाथों मुझको, सरे-समशीर किया है |
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