रविवार, 19 दिसंबर 2010

ग़ज़ल

बेवफाई ने तेरी दिल को, पत्थर बना दिया है   
घावों में जालिम कैसे, नश्तर लगा दिया है | 


तुझे क्या मालूम ये दिल, कैसे-कैसे जिया है 
जग-हँसाई को इसने कैसे, छुप-छुप कर पिया है | 


अब तो यह तन मेरा, बस बुझाता हुआ दिया है 
जाने कब मिट जाए, तड़पा बहुत हिया है | 


मेरी वफ़ा का तूने, अच्छा  सिला दिया है 
कोई क़सर न छोड़ी, जी भर जफ़ा किया है |


कहती हो खुद को सुशीला, पर क्या शील किया है,
अपने ही हाथों मुझको, सरे-समशीर किया है |


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