सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

भीगी पलकें

आज  मुझे  छूने  दो    
खुद  को, 
कुछ  पल  तो 
जीने  दो मुझको |
सिसक -सिसक  कर  
आहें   भरती,
तुम बिन प्रियतम
निशि-दिन मरती |
बन जाओ मेरा अवलंबन
एक मधुर चुम्बन लेने दो
आज मुझे  छूने दो 
खुद को |
                

                          .............................

3 टिप्‍पणियां:

जीवन का उद्देश ने कहा…

अच्छा है। धन्यवाद

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने

vijay kumar sappatti ने कहा…

बहुत सुन्दर नज़म ,छोटी सी , लेकिन भावपूर्ण ..

आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html