मंगलवार, 1 मार्च 2011

एक अहसास हो तुम

एक अहसास हो तुम

मेरी  प्यास हो तुम

न  पाउंगी तुमको

ये जानती  हूँ

फिर भी अपना 

 क्यूँ  मानती हूँ?

जिधर देखती हूँ

उधर तुम ही तुम हो

पकड़ना जो चाँहू 

हो जाते हो 

 क्यूँ गम हो ?

कैसे बताऊ ?

है प्यार कितना

सागर में पानी 

होगा न उतना 



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2 टिप्‍पणियां:

जीवन का उद्देश ने कहा…

आप ने इहसास को सुन्दर शब्दों की जन्जीर से बांधा है। हमारी ओर से धन्यवाद तथा बधाई स्वीकार करें।

Dr.Sushila Gupta ने कहा…

very very thanks shahnawaz ji...........aapke comment mera utsaahvardhan karte hain..i hope isee tarh aap mera manobal badhyengen.thanks again.