मंगलवार, 15 मार्च 2011

एक राज हो तुम

एक  अहसास     हो  तुम 

एक  राज  हो  तुम 

मेरे  दिल  की  चाहत 

फ़रियाद  हो  तुम 

भुला  न  पाउंगी  तुमको 

इस  जनम  में 

तुम  मेरे  मसीहा 

सरताज   भी  तुम 

रोशनी  फैली  है 

इस  जहाँ  में  जिससे 

मेरे  लिए  वह 

आफ़ताब  भी  तुम 
                           


                      ...........................................

4 टिप्‍पणियां:

weblooktimes ने कहा…

atisunder rachna.
dr. sahiba bahut khub.

संजय भास्‍कर ने कहा…

शब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति !

daanish ने कहा…

prem-rs mei doobi
badee priy kavitaa ...